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The Curated Collective

Shikshantar ke Bacche, Poem By Minoti Didi

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“You can’t stay in the corner of the Forest waiting for others to come to you. You have to go to them sometimes”

Winnie the Pooh

A A Milne

शिक्षांतर के बच्चे
थोड़े पक्के ... कुछ कच्चे
लेकिंन दिल के बहुत सच्चे
थोड़े नटखट थोड़े खटखट
खेल कूद में लगाएं मन झटपट
आँखों में नचिकेता की ज्वाला लिए
मन में सवालों की माला
" दीदी, क्या करेंगे आज?"
" चिड़िया को देख कर ,इतना अच्छा क्यों लगता है?"
" Z के आगे कोई अक्षर क्यों नहीं
" choice time इतना कम क्यों होता है ?"
" क्या चाँद cheese का बना है?"
" Mummy इतना डाँटती क्यों है?"
जितने सवाल उतने जवाब
सवालों में छिपे जवाब
कुछ सवाल ही हैं जवाब
ज़िन्दगी की धुन गुनगुनाते हुए
बारिश में भीगते हुए
तितलिओं के संग भागते हुए
कब हो गए इतने बड़े...?

हमारे बच्चे

 
इनको देख मन में उठा एक सवाल ...
" क्या अलग हैं शिक्षांतर के ही बच्चे?"
या अलग है हम बड़ों की नज़र

आखिर

 
जग के सारे बच्चों की है एक ही ज़ुबानी
पर है अलग अलग कहानी
हैं वे सब भी शिक्षांतर के ही बच्चे
थोड़े पक्के ... कुछ कच्चे

- मिनोति दीदी

 

A Poem by Minoti Didi, our Chairperson, who is curious at heart - on the journey of encouraging, discovering and learning together with children. The immersive learning that leads to inquiring minds of children at Shikshantar.

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